पत्ता

जब एक पत्ते ने पेड़ को स्वार्थी कहा.

 

एक पत्ता मेरे पैरो पे आ गिरा,
पूछने पे बताया उसने अपना गिला.
कहने लगा, पेड़ स्वार्थी है.
मुझे गिरा कर उसे क्या मिला?

मैंने कहा ,पत्ते तू नादान है,
क्या तुझे जरा भी भान है?
उससे कितना दर्द हुआ होगा,
वह चुप है क्युकि वह महान है.

तू तो टूट के उड़ जायेगा कही,
नये साथी बना लेगा कई,
और वह वही रहेगा खड़ा.
तकलीफ में भी चुप रहेगा वही.

नई पत्तिया जो है अनजान,
उन्हें देगा खुद की पहचान,
और जब उनसे रिश्ता बनेगा,
वह भी चली जाएँगी, जैसे एक मेहमान.

तो अब बता, क्या वह सच में स्वार्थी है?
या बस नये को अपनाने का गुनेहगार?
यह सुनकर दुःख में वह पत्ता सूख गया,
वर्षा से जीत के भी मिली उसे बस हार.

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An engineer who finds joy, comfort and peace by writing poems and strumming chords. Come, let me take you to an alternate reality.

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