खेल

 

एक खेल खेला करते थे हम.
खेल के कुछ नियम हुआ करते थे.
जीत और हार से टटोलते थे मन
छोटी छोटी बातो पे झगड़ा करते थे.
काफी नोक झोक हुआ करती थी
लड़ाईया भी हुआ करती थी
पर पता है उन सबके बाद भी
खेल की गाडी नहीं रूकती थी.
सब कुछ भूल के अगले दिन फिरसे एक खेल खेला करते थे हम.

अब खेलने के दिन गए शायद
नियम के बंधन भी मिट गए शायद
रोज़ रोज़ मिलना भी काम हो गया शायद
पार छोटी छोटी बातो में झगडे आज भी होते है
और फिरसे वह दो दोस्त साथ में कभी नहीं खेलते है.
शायद समझदार बनते बनते समझ कम हो जाती है,
दोस्ती बिना किसी बात के कहानी बन के रह जाती है,
जो बात बचपन में पता थी आज नहीं समझ आती है,
सिर्फ खेल बदला है, पर हम तो आज भी वही साथी है.

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An engineer who finds joy, comfort and peace by writing poems and strumming chords. Come, let me take you to an alternate reality.

6 thoughts on “खेल

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