एक खेल खेला करते थे हम.
खेल के कुछ नियम हुआ करते थे.
जीत और हार से टटोलते थे मन
छोटी छोटी बातो पे झगड़ा करते थे.
काफी नोक झोक हुआ करती थी
लड़ाईया भी हुआ करती थी
पर पता है उन सबके बाद भी
खेल की गाडी नहीं रूकती थी.
सब कुछ भूल के अगले दिन फिरसे एक खेल खेला करते थे हम.
अब खेलने के दिन गए शायद
नियम के बंधन भी मिट गए शायद
रोज़ रोज़ मिलना भी काम हो गया शायद
पार छोटी छोटी बातो में झगडे आज भी होते है
और फिरसे वह दो दोस्त साथ में कभी नहीं खेलते है.
शायद समझदार बनते बनते समझ कम हो जाती है,
दोस्ती बिना किसी बात के कहानी बन के रह जाती है,
जो बात बचपन में पता थी आज नहीं समझ आती है,
सिर्फ खेल बदला है, पर हम तो आज भी वही साथी है.
Thank you for sharing this.
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🙂 My pleasure
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Memories ❤️
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Hello,
Thank you for reading my poem and liking it. 🙂
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Really nice one👌👌👏👏
Sbse accha h ki aap khud apna likha padh k sunate h🙂🙂
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Hi,
Thank you for such kind words. 🙂
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