वह हस्सी अब धुंदली दिखती है,
जिस पर मुझे नाज़ हुआ करता था…
आँखे भी अब कहा सच देखती है,
सच न जाने क्या हुआ करता था…
जब रौशनी गिरती है चेहरे पे,
उसके पीछे का अँधेरा ज्यादा दिखता है…
सुबह का सूरज नया दिन नहीं लाता,
रात की नींद दिन में मिलती है…
फिर भी यह दुनिया चलती है.
और चलना भी चाइये, क्युकि सही है.
बस एक बार यह धुंधलापन मिट जाये,
वह हस्सी यही कही छिपी है.
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