बात की गहराई को समझा तो यह समझा की
समझदार भी नासमझ बना बैठा है
बात की गहराई को समझा तो यह समझा की
समझदार भी नासमझ बना बैठा है
बात समझ तक ही सीमित रह गयी
उससे सफल करने का मकसद कही खो रखा है
सोच सोचकर, बंद आँखों से यही पाया की
आंखे खुली होती तो सोच आजकी होती
पर एक समय में एक काम तक सीमित यह इंसान
काश यह दुनिया या तो सिर्फ केह पाती या सुनती,
और फिर खोये पलो को टटलोने की आदत से लाचार यह इंसान
ठोकरे खाना अपनी किस्मत में खुद लिख देता है
ठोकरों में उलझा उलझा यह समय का एहसान
आंखे बंद होने पे ही चुकता हो पता है
सोचता हूँ तो यह सोचता ही रह जाता हु की आखिरी सोच क्या होनी चाहिए
और यही इंसानो की तरह गलत हो जाता हूँ, समझदार होक भी नासमझ हो जाता हूँ
थक के आखिर में खुद को बंद आँखों से सोचता पता हूँ
आजका इंसान होके कल में चला जाता हूँ
बात की गहराई को समझता ही रह जाता हूँ