Somewhere down the line humans failed humanity.
यार क्या हो गया है हममे?
तेहज़ीब कहा गई हमारी?
शर्म आती है ऑनलाइन आने में,
सोच इतनी घिनौनी होगयी है हमारी.
आज जहा पूरा देश, पूरी दुनिया
अच्छा बनाने की कोशिश कर रही है,
घिन आती है जब पढता हूँ सुर्खिया,
इतनी घटिया सोच कहा से जन्म रही है?
सोच से ही सच होता है,
गन्दी सोच गन्दा कल लाएगी.
सिवाई अफ़सोस के अब कुछ नहीं होता है,
नजाने नई सोच कब आएगी?
कुछ कहना चाहता हूँ,
उन सब से जो मुझे सुन रही है.
फ़िलहाल आप सबसे माफ़ी मांगना चाहता हूँ,
गलत आप नहीं, यह सोच है. इस सोच को बदलना बहुत जरुरी है.
सरल व्यक्ति के साथ
किया गया छल
आपकी बर्बादी के
सभी द्वार खोल देता है
चाहे आप कितने भी
बड़े शतरंज के खिलाड़ी
क्यों न हो।
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Bohot ummda baat kahi aapne. 🙂
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Well penned, Indeed!
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Couldn’t help myself from composing this Poem. Need of the hour.
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